दुनिया में खेती के बाजारीकरण ने छोटे किसानों को लील लिया। क्या यह मॉडल छोटी जोत वाली खेती में कारगर हो सकता है? दुनिया के आंकड़े बता रहे हैं कि खेती के बाजारीकरण से किसानों ने अपनी जमीन खोयी है। भारत में कृषि उद्योग नहीं है, यह किसान की अस्मिता का उपक्रम है। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी किसान की जमीन उसके वंशजों को मिलती रहती है।
वह उसकी कीमत का समझौता कैसे कर सकता है।