सिरसा 16 जून :
देश के मौजूदा व्यापारिक हालात पर चिंता जताते हुए
गुलजार मोटर्स सिरसा के संचालक व समाजसेवी गुरविन्द्र सिंह घुम्मण ने कहा
कि बड़े कठिन यत्न के बाद सभी प्रोफेशनल्ज, रिकल्ड लेबर, रेहड़ी वाले,
किसान, रिटेल व अन्य सेक्टर से सम्बन्ध लोग बाजार में अपनी कमाई करना
चाहते है जबकि बाजार में बहुतायत ग्राहकों की मासिक आय 2 हजार से 12
हजार रूपये मासिक है । इसमें से यदि बिजली का बिल, डीजल व पैट्रोल
खर्च, घर का किराया इत्यादि फिक्स खर्च निकालकर गाहक के पास 2 से 6
हजार रूपये बचते है और देश का समूचा सिस्टम ग्राहक की इस बचत पर
टिका हुआ है । इस सीमित-सी राशि में यह ग्राहक डॉक्टर, धोबी, नाई,
घरेलू सामान व अन्य खाद्य पदार्थ खरीदता है अथवा ऐसे कहा जाए किवह
सिर्फ नग पूरे कर रहा है । इस स्थिति में ग्राहक को क्वालिटी व डुप्लीकेसी
से मतलब नहीं रह जाता। आज हर वस्तु, सेवाएं व मजदूरी इतनी सस्ती है।
कि ग्राहक के पास पैसा न होने के कारण उसे हर वस्तु अथवा संवा मंहगी
लगती है। ग्राहक को दो जाने वाली छूट का कोई पैमाना निर्धारित नहीं है
और तो ओर बाजार में उत्पादों के क्रय-विक्रय एवं व्यापारिक लाभ के सम्बन्ध
में कोई स्पष्ट नियम नहीं जिसका नतीजा यह है कि सिस्टम ने विक्रेता को
सेल की बजाय परचेज पर मुनाफा कमाने को मजबूर कर दिया है। ग्राहक को
क्वालिटी और मूल्य बताए कुछ जाते है और दिए कुछ जाते हैं । फलस्वरूप
घटिया व गुणवताहीन सामान बाजार में बिक रहा है। अंततः यही हालात
बाजार में अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को जन्म देते है जिसके चलते आज सारे सिस्टम
का मुनाफा ना के बराबर है और सारे सिस्टम को इसकी बहुत बड़ी कीमत
चुकानी पड़ रही है ।
अब इसका हल यही है कि हमें ग्राहक की क्रय शक्ति बढ़ानी पड़ेगी
परन्तु जिस आदमी को ग्राहक की संज्ञा दी जा रही है तो वो उपरोक्त सिस्टम
में ही जुड़े हुए लोग है अर्थात उपरोक्त सभी लोग ही एक दूसरे के ग्राहक
उपरोक्त लोगों को अपनी जगह किस प्रकार आर्थिक रूप से
किया जाए, इसका जबाब हमें स्वयं ढूंढना होगा । उद्योगपतियों की क्वांटिटी
सेल बेस बिजनेस की नीति ने भी इस फंलियर सिस्टम को जन्म देने का खूब
किया है ।
वेशकीमती दुकानें/शोरूम, इन्फ्रांस्ट्रक्टचर और व्यापारी द्वारा
काम
खुद फ्री में काम करने के बाद भी उसे बेहद कम मार्जिन मिलता है। जिसके कारण पढ़ी-लिखी और हुनरमंद युवा पीढ़ी इन संस्थानों पर पर मजबूरीवश केवल 3 से 8 हजार रूपये प्रतिमाह काम कर रही है । यदि व्यापारी के पास थोड़ा सा भी मार्जिन हो तो युवा पीढ़ी इससे लाभान्वित हो सकती है। कमाई न होने के कारण देश के हुनरमंद और बेहद प्रतिभाशाली युवा अपनी मातृभूमि को छोड़कर विदेशों में जाना पसंद करते है । सरकार की न तो कोई राष्ट्रीय पॉलिसी है और न ही किन्हीं चार व्यापारियों ने एकत्रित होकर मौजूदा हालात पर चर्चा की है । इस प्रकार उपरोक्त सभी लोग केवल मात्र मार्किट में अपना वजूद बचाने के लिए अपनी सेवाएं, मजदूरी त मनाफा इसी प्रतिस्पर्धा के आगे भंद चढ़ा रहे हैं । आज हमारे बच्चे जब इस सिस्टम में प्रवेश करत है तो उर्जा एवं जोश के बावजूद वह सिर्फ दो साल में मानसिक रूप से बूढे हो जाते है और सिस्टम के सामने अपने हथियार डाल देते हैं । दूसरी ओर आज के युग में विदेशी कम्पनियां हमारे देश में पूरा टैक्स भरकर ईमानदारी व क्वालिटी देकर अच्छा मुनाफा कमा रही है । इसका मतलब यह हुआ कि ग्राहक की जेब में पैसा तो है परन्तु भारत के फेलियर सिस्टम में उससे पैसा लेने की काबिलियत नहीं रही इसके अतिरिक्त एक ऐसा वर्ग भी है जो अच्छी आय अथवा तनख्वाह प्राप्त करते हुए क्वालिटी व एक दाम पर भरासा करता है । यह वर्ग पूरा टेक्स भरने के साथ-साथ मार्जिन लेने व देने पर
[11:47, 8/17/2020] sourabhjindal1995: यकीन करता है जिसके चलते यह वर्ग अपने आपको आर्थिक रूप से समृद्ध कर रहा है । हम सभी को इनका अनुसरण करते हुए इनके गुणां को ग्रहण करना होगा । आम धारणा यह है कि व्यापारी टैक्स चोरी करते है परन्तु सच्चाई यह है कि इस अंधाधुंध प्रतिस्पर्धा के चलते सारा सरकारी टैक्स ग्राहक को पास कर दिया जाता है । यदि व्यापारी को मार्जिन मिले तो केन्द्र एवं राज्य सरकारों के पास इतना टैक्स आ सकता है जिसकी सरकारें उम्मीद भी नहीं कर सकती और निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को सिस्टम को सुधारने की दिशा में पहल करते हुए एक राष्ट्रीय पॉलिसी को अस्तित्व में लाना चाहिए। लोगों को गम्भीर के साथ सोचना होगा कि या तो सभी लोग प्रतिस्पर्धा के नाम पर सिस्टम के आगे घुटने टेक दें या फिर उसे सुधारने की दिशा में प्रयास करें । देशवासियों द्वारा 'मार्जिन' को हल्के में लेने की नीति का असर यह हुआ है कि आज हमारे समाज में माफिया, भूखमरी, बेरोजगारी, गरीबी, स्वार्थीपन, व्यक्तिगत अस्थिरता, अस्वस्थता व भविष्य को लेकर निराशा जैसे दानव उभरे हैं । यदि लोगों को भरपेट रोटी मिले तो जुर्म की ओर नहीं बढ़ेगे। हमारे देश के पास 125 करोड़ लागां की भारी भरकम अर्थव्यवस्था है। और हमं इस असीम सामर्थ्य का फायदा उठाना चाहिए। आज हमें मार्जिन लेने और देने की नीति अपनान को संख्यत जरूरत है और इस दिशा में प्रयोग के तौर पर मेरा निजी अनुभव और सुझाव यह कि सिस्टम में यदि पांच पैसे से पांच रूपये का मार्जिन और डाल दिया जाए तो सिस्टम में एक ऐसी सकारात्मक लहर आएगी जिससे हर बर्ग राहत महसूस करेगा । यह एक ऐसा सुझाव है जो यदि सिस्टम में सम्मिलित लोगों को समझ में आए तो देशवासियों की दशा और दिशा दोनों ही बदल सकती है ।
खुद फ्री में काम करने के बाद भी उसे बेहद कम मार्जिन मिलता है। जिसके कारण पढ़ी-लिखी और हुनरमंद युवा पीढ़ी इन संस्थानों पर पर मजबूरीवश केवल 3 से 8 हजार रूपये प्रतिमाह काम कर रही है । यदि व्यापारी के पास थोड़ा सा भी मार्जिन हो तो युवा पीढ़ी इससे लाभान्वित हो सकती है। कमाई न होने के कारण देश के हुनरमंद और बेहद प्रतिभाशाली युवा अपनी मातृभूमि को छोड़कर विदेशों में जाना पसंद करते है । सरकार की न तो कोई राष्ट्रीय पॉलिसी है और न ही किन्हीं चार व्यापारियों ने एकत्रित होकर मौजूदा हालात पर चर्चा की है । इस प्रकार उपरोक्त सभी लोग केवल मात्र मार्किट में अपना वजूद बचाने के लिए अपनी सेवाएं, मजदूरी त मनाफा इसी प्रतिस्पर्धा के आगे भंद चढ़ा रहे हैं । आज हमारे बच्चे जब इस सिस्टम में प्रवेश करत है तो उर्जा एवं जोश के बावजूद वह सिर्फ दो साल में मानसिक रूप से बूढे हो जाते है और सिस्टम के सामने अपने हथियार डाल देते हैं । दूसरी ओर आज के युग में विदेशी कम्पनियां हमारे देश में पूरा टैक्स भरकर ईमानदारी व क्वालिटी देकर अच्छा मुनाफा कमा रही है । इसका मतलब यह हुआ कि ग्राहक की जेब में पैसा तो है परन्तु भारत के फेलियर सिस्टम में उससे पैसा लेने की काबिलियत नहीं रही इसके अतिरिक्त एक ऐसा वर्ग भी है जो अच्छी आय अथवा तनख्वाह प्राप्त करते हुए क्वालिटी व एक दाम पर भरासा करता है । यह वर्ग पूरा टेक्स भरने के साथ-साथ मार्जिन लेने व देने पर
[11:47, 8/17/2020] sourabhjindal1995: यकीन करता है जिसके चलते यह वर्ग अपने आपको आर्थिक रूप से समृद्ध कर रहा है । हम सभी को इनका अनुसरण करते हुए इनके गुणां को ग्रहण करना होगा । आम धारणा यह है कि व्यापारी टैक्स चोरी करते है परन्तु सच्चाई यह है कि इस अंधाधुंध प्रतिस्पर्धा के चलते सारा सरकारी टैक्स ग्राहक को पास कर दिया जाता है । यदि व्यापारी को मार्जिन मिले तो केन्द्र एवं राज्य सरकारों के पास इतना टैक्स आ सकता है जिसकी सरकारें उम्मीद भी नहीं कर सकती और निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को सिस्टम को सुधारने की दिशा में पहल करते हुए एक राष्ट्रीय पॉलिसी को अस्तित्व में लाना चाहिए। लोगों को गम्भीर के साथ सोचना होगा कि या तो सभी लोग प्रतिस्पर्धा के नाम पर सिस्टम के आगे घुटने टेक दें या फिर उसे सुधारने की दिशा में प्रयास करें । देशवासियों द्वारा 'मार्जिन' को हल्के में लेने की नीति का असर यह हुआ है कि आज हमारे समाज में माफिया, भूखमरी, बेरोजगारी, गरीबी, स्वार्थीपन, व्यक्तिगत अस्थिरता, अस्वस्थता व भविष्य को लेकर निराशा जैसे दानव उभरे हैं । यदि लोगों को भरपेट रोटी मिले तो जुर्म की ओर नहीं बढ़ेगे। हमारे देश के पास 125 करोड़ लागां की भारी भरकम अर्थव्यवस्था है। और हमं इस असीम सामर्थ्य का फायदा उठाना चाहिए। आज हमें मार्जिन लेने और देने की नीति अपनान को संख्यत जरूरत है और इस दिशा में प्रयोग के तौर पर मेरा निजी अनुभव और सुझाव यह कि सिस्टम में यदि पांच पैसे से पांच रूपये का मार्जिन और डाल दिया जाए तो सिस्टम में एक ऐसी सकारात्मक लहर आएगी जिससे हर बर्ग राहत महसूस करेगा । यह एक ऐसा सुझाव है जो यदि सिस्टम में सम्मिलित लोगों को समझ में आए तो देशवासियों की दशा और दिशा दोनों ही बदल सकती है ।